आँगन मैं खेल रही,
एक छोटी परी
हलके से गिरी
धीरे से बोली माँ.
आके लिपट गयी
मेरे दामन से
दो गर्म बूंदे
पड़ी मेरे गालो पर
जैसे ठंडी बारिश की बौछार
माँ का अहसास
माँ बन कर पाया
सुकून माँ के दामन का
मेरी परी ने मुझ में पाया
हैं कई हाँथ
जो छूट गए हैं
छुप गयी हैं
किन्ही की माँ
बादलो के उस पार
पर दूर से देखती हैं
सहलाती हैं वोह
अपनों की दुनिया
पर हर्षाती हैं वोह
जो दी खुदा ने नैमते
सबसे बड़ी नैमत मेरी माँ
अपनी माँ का स्नेह
और अपने मम्त्तव
रहे दोनों का ही स्पर्श सदा
कण कण मैं बसा हैं
प्यार मेरी माँ का
कण कण मैं बसा हैं
स्पंदन
मैं हूँ एक माँ