आधा अधूरा
खवाब यह मेरा
कही बिखर न जाये
मेरी आँखों मैं पलते मंजर
कही टूट न जाये
मेरे अन्दर मैं उठते
कई तूफ़ान हैं
मेरी अनकही बातों मैं
कई पैगाम हैं
आज कही यह तूफ़ान,
यह पैगाम,
सैलाब बन बह न जाए
डरती हूँ, जो आ गए
मेरी रूह के राज बाहर
डूब जाएगी, यह कायनात
उन दो बूंदों मैं
जो निकलेंगे
चीर कर सीना मेरा
गुम हो जायेगी हसीं होंठो से
चमन से बहार चली जायेगी,
चली जायेगी चाहत,
जीने का सबब ,
और मैं बस खाली हो जाऊंगी
यह अधूरे खवाब,
यह आधे से मंजर,
यह अनकहे पैंगम
और उठते तूफ़ान
मेरी पहचान हैं
कही टूट न जाए
कही बिखर न जाये
zindagi se haar maan lene ki sochee ! usne kaha aurat ho aur maa bhi tumhe toot kar bikharne ka haq hi nahin diya maine !