दिन प्रतिदिन की दिनचर्या मैं, भागते दौड़ते, शायद हम सब अपने मैं इतने लिप्त हो जाते हैं की भूल जाते हैं अपने आस पास क्या हो रहा हैं. हर छोटी सी मुश्किलों, परेशानियों पर हम कोसने लगते हैं अपने आप को, अपनी तकदीर को, हम क्यों यह सब सह रहे हैं, वोह दूसरा इतना तरकी कर रहा हैं, हम क्यों नहीं, और उपरवाले से हज़ार शिकायते और सुबह का दिया जलाते हुए कुछ प्रार्थनाये.
पर कभी कभी यूँही जिंदगी अहसास करा जाती हैं, पूँछ जाती हैं …….. झोली खाली हैं या भरी
आज का दिन भी वही शुरू हुआ, उन्ही लोगो के प्यार और न भूले कामो से भागा, मौका लगा तो अपने दोनों बच्चो को लेकर एक बुक स्टोर गयी, वहा इतने सारे खिलोने और इतने सारे नए नए तरह के सामान देखकर शन भरके लगा कितना कुछ हैं जो मैं उन्हें नहीं दे पाती हूँ, जो मैं देना चाहती हूँ, कितना खाली हैं मेरे दिल का वोह कौन, जो चाहता हैं सारी नैमते ला दूं उन दोनों के लिए.
पर दुसरे ही पल अहसास हुआ की कितना कुछ हैं इन के पास, प्यार करने वाला परिवार, सारी सुख सुविधायाँ, विदेश मैं रहने, घुमने का मौका, और ढेर सारे (जो वोह भूल जाते हैं) खिलोने. हज़ारों मासूम तरस जाते हैं एक दाने खाने के लिए, माँ बाप की छत्र छाया के लिए और तन के दो कपड़ो के लिए, मेरी झोली तो भरी हैं बहुत भरी हैं.
और संजोग ऐसा, एक ही रोज मैं दूसरा अहसास भी हो गया, घर का सामान खरीदते हुए, एक महिला ने तारीफ करनी शुरू की, कितनी प्यारी बच्ची हैं, विदेश मैं कोई अपनी भाषा मैं बात करे तो वैसे ही अच्छा लगता हैं, वार्तालाप शुरू हुआ और बात बात मैं निकला की घर पर हैं दो महीने तंग करंगे (माँ हूँ स्नेह भी हैं, पर विचलित भी हूँ जाती हूँ उनकी शरारतो से ), तो वोह महिला एक ही वाक्य बोली ” त्वाडे कोल तो बच्चे हैं और तुसी कहंदे हो तंग करेंगे और असी हैं की १५ सालो से इन्तेजार कर रहे हैं इक ही हो जावे (आपके पास तो बच्चे हैं और आप कहते हो तंग करेंगे और हमे देखो पंद्रह सालो से इन्तेजार कर रहे हैं इक बच्चे के लिए).
शन भर के लिए दिल रो पड़ा उनकी पीड़ा देखकर, शन भर के लिए खुद पर धिकार भी हुआ, चीर गयी दिल को उस महिला की वोह बात, अहसास हुआ की मेरी झोली तो भरी हैं, इक अच्छा जीवनसाथी हैं, बच्चे भगवान् की दया से सकुशल हैं, आराम से हंस बोल के, बिना कोई चिंता लिए बचपन जी रहे हैं…….दिल से एक धन्यवाद निकला
पिछले दो सालो से मैं गृहणी हूँ, कुछ लिख लेती हूँ, कुछ काम करती हूँ संस्थाओं के लिए, ज्यादा चाहते नहीं हैं अपने लिए, खुश हूँ की भगवान् का दिया इतना आशीर्वाद हैं की इक बेहतर जीवन व्यतीत हो रहा हैं, अपने परिवार, अपने बच्चो की परवरिश का अभिन अंग हूँ,
दिक्ते तो आती हैं कभी ऊपर तो कभी नीचे…लहरों की तरह जीवन की नैयाँ भी हिचकोले खाती हैं…..विश्वास डगमगाता हैं, झोली खाली लगती हैं, लेकिन फिर जीवन का हेर फेर दिखा जाता हैं आइना की देख तेरे पास कितनी खुशियाँ हैं, कोई बात नहीं कुछ दिक्ते तो काला टीका हैं की तेरी भरी झोली को किसीकी नज़र न लगे….
kya likhu kya na likhu ye bat ham se tay nahi hoti..
jo har panne pr likh di jay mohabbat vo se nahi hoti. guddu yadav