लम्हा लम्हा रेत हुआ जाता हैं
कतरा है वोह वक्त का
खतम हुआ जाता हैं
तेरे आने की हसरत लिए बैठे हैं
सिहर उठता हैं मेरा रोम रोम
तेरे आगोश की तपिश लिए बैठे हैं
छुअन का अहसास हैं ऐसा
जर्रा जर्रा राख हुआ जाता हैं
लम्हा लम्हा रेत हुआ जाता हैं
साँसों की कशिश हैं ऐसी
पिघल जाऊँगी तेरे पास आकर
हाय यह दिल बेहोश हुआ जाता हैं
तेरे बोलो मैं मिलेंगे जो बोल मेरे
सोचकर ही संगीत बना जाता हैं
आ जाओ तोड़ कर सरे बंधन
लम्हा लम्हा रेत हुआ जाता हैं
इतंजार से अच्छा ह इश बेसकीमती लम्हे को रेत ना होने देकर ऊपजावु मिट्टी बनालो
आज 15/05/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
सूनेपन का हर लम्हा
उम्मीदों से तुम भरा करो …