हाथ पकड़ कर, मनुहार वोह करने लगे
किस बात पर नाराज़ हो, किस बात पर तुम यूँ उफकने लगे
हम ने नज़र फिरा, थोडा सा ठिठक कर कहा
हम क्यों तुमसे रूठने लगे ,
हमारी बिसात ही क्या, जो हम ऐसे बहकने लगे
सब अछा हैं, सब ठीक हैं, आखो के आंसू छुपाने लगे
पर फिर बड़े प्यार से हाथ फिरा
उन्होंने हमे थप्काया, और पूछने लगे,
जानम बता दो हमरी खता क्या हैं
किस बात तुम बेहाल होने लगे
बस फिर क्या था, सारे बाँध तोड़
आखों के मोती, टपकने लगे
सारे शिकवे जुबां से, लरजने लगे
दिल के टुकड़े हमारे, क्योंकर हुए
सरे किस्से बया होने लगे
लगा था सुन उनका आगोश
और भी मजबूत हो जाएगा
अपने रुमाल से हमारी
आखो की नमी वोह उठाने लगंगे
पर न हुआ यह
वोह जो सुनना चाहते थे, हम क्यों हैं परेशान
अचानक भडकने लगे, हमारी शिकायतों से उफनने लगे
हमारे हाले दिल, उन्हें तरकश के तीर से चुभने लगे
हाय रे यह इंसान का अहं
एक पल मैं आंसूं भी, पत्थर लगने लगे
वोह थपकते हाथ यूँ ही रुक गए,
हम फिर तनहाइयों मैं भटकने लगे
शिकवा न करे तो भी अकेले,
और करे तो भी अकेले
क्या करे क्या न करे,
वोही समझने की, कोशिश करने लगे
Wow!!!! loved it….. and the reply was too awesome…cant believe it!!! wow…..
behtareen…
waah !
Thanks Kush and Pooja!! @ Nirantarji, yeh maine ek woman ke perpective se likhi thi….ab aap isme hamare malecounterparts ka reply bhi dijiye….