चला जाता हूँ राहों मैं अपनी
अपनी दुनिया के काफिले उठाये
यह दरो दीवार हैं मेरी अपनी
इन मंजिलों को मुठ्ठी मैं दबाये
किश्तियाँ तैरती हैं आंगन मैं मेरे
बारिश के टपकते पानी मैं
उड़ती हैं तितलियां फूलो पर
कुछ अहसास दामन मैं छुपाये
दुनिया हैं मेरी इतनी हसीं
कही कुछ खो न जाए
रखना ए खुदा अपना हाथ
इस मुसाफिर पर
जन्नतो सा यकीन आ जाये
तेरी दी हुई नैमतो पर