तार तार, तार तार
आँचल उसका तार तार
मैला दामन, लहूलुहान जिस्म
रोता उस का रोम रोम
चीख चीख बस यही सवाल
क्यों तार तार , क्यों तार तार
स्त्री को यूँ तो पूजा कितने रूपों मैं
किसी की बेटी, किसीकी बहिन
किसीकी प्रियतमा , किसी की माँ
कई रूप मैं देखा, कई रूप मैं जाना
पर फिर क्यों तार तार, क्यों तार तार
जब नज़र उठाई उसकी ओर ,
क्यों न देखा एक इन्सान हैं वो
जब हाथ डाले उसके दामन पर
क्यों न सोचा किसी का परिवार हैं वो
क्यों दरिंदगी का खेल यों खेला
क्यों तार तार, क्यों तार तार
कहने को हैं कितना कुछ,
आक्रोश, भी हैं, घुटन भी हैं
स्त्री के साथ होते इन कुकर्मों,
के प्रति अथाह घ्रीणा भी हैं
उन दरिंदो के हाथ चीरे कितने ही दामन
क्यों तार तार, क्यों तार तार
रोता हैं ह्रदय, घुटता हैं मन
आज की इस दुनिया मैं
क्यों होता हैं एक स्त्री के संग, यह सब
न उम्र का लिहाज, न इंसानी जज्बे का
न जाने बंद होगा यह सब, जाने कब
क्यों तार तार, क्यों तार तार
very touchy read !