पहली बारिश की सौंधी महक मैं
सरदी की गुलाबी दौपहर मैं
गर्मी की उस तेज उमस मैं
और फागुन के सुन्हेरी स्नेह मैं
घर याद आता हैं, बहुत याद आता हैं
बाबा के हलके से कांपते हाथो मैं
माँ की धीरे होती काम की रफ़्तार मैं
भाई की कम होती शरारतो मैं
घर की पुरानी होती दीवारों मैं
घर याद आता हैं, बहुत याद आता हैं
अपने बालो की हलकी से सफेदी मैं
अपने बच्चो की बढ़ती उम्र मैं
यादो की गलियों मैं
बनती मिटती, धुन्द्लाती तस्वीरों मैं
घर याद आता हैं, बहुत याद आता हैं
बॉलीवुड की फिल्मो मैं,
त्योहारों की लड़ियों मैं
पुराने संभाले खतो मैं, खानों की महक मैं
देश की रोज बदलती, सुनी अनसुनी खबरों मैं
घर याद आता हैं, बहुत याद आता हैं
बहुत दूर हूँ बैठी घर से
अपना नया घर बनाये
एक आंगन पीछे छोड़
एक नया आशियाना बनाये
घर याद आता हैं, बहुत याद आता हैं
उस मट्टी, उस हवा,
उस अहसास से मीलो दूर
फिर भी वही अपने अंदर दबाये
नए देश मैं, पुराने रंग ढूँदती
घर याद आता हैं, बहुत याता हैं
कैसा हैं असमंजस,
कैसी हैं यह, विडंबना
रोज जीती हूँ, एक नयी मूरत बनाये
रोज मिटी भी जाती हूँ, याद का दीपक जलाए
घर याद आता हैं, बहुत याद आता हैं