बीते दशको को आज मैं जीते
इन्तजार करते उस गोधुली का
जब आये उनके प्रियजन
हौंसला ले उनके हाथ पकड़ने का
वोह धुंदली आँखें, वोह काँपते हाथ
मुड़ मुड कर देंखे, रह रह के चाहे
कोई आ कर थामे उनके भी हाथ
जिन हाथो ने वोह नन्ही ऊँगली थामी
जिन बाहों ने अपनेपन की चादर डाली
जो पाँव चले आगे आगे, भागे पगडण्डी पर
राह दिखाई, मरहम लागाई, वोही चले अकेले,
बिना सहारे, बूढ़े हाथो मैं लाठी थामे
जीवन की संध्या पर
एक ही आशा, एक ही साँस
साथ हो अपने दिल के टुकड़े
प्यार से बोले,सुने समझे मन के हाल
उनके ही अंश, उनके ही वंश
बस पास हो उनके, हो प्रत्यक्ष
छोड़ गए हैं दिल के टुकड़े,
आज जो जीते अपनी सुबह को
थोडा सा अपने हिस्से का सूरज
क्यों न देते अपने ही अपनों को
अपने होंठो की स्मित मुस्कान
क्यों न फैलाते, उन सूनी आँखों मैं
लो आज पकड लो अपने अपनों का हाथ
दे दो साथ, थोड़ी सी प्रिय, स्नेह की बौछार
उनको, जो सांझ की चौखट पर बैठे
बीते दशको को आज मैं जीते
इन्तजार करते उस गोधुली का
जब आयेंगे उनके अपने प्रियजन
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