Tag Archives: कविता

भॅवर

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IMG_0875जिंदगी इतनी मुश्किल क्यों हैं

आँखों मैं इतनी नमी क्यों हैं

बाँध  तोड़ के बहते हैं दरिये

इतनी आसानी से सब्र टूटते  क्यों हैं

 

जिंदगी रंगी क्यों हैं आँसुओं के रंग में

दामन गीला और मन भारी क्यों हैं

सरे रंग छोड़ के खड़ी हैं कलम मेरी

फिर कहे की पन्ने  यूं  कोरे क्यों हैं

 

जिंदगी के आईने मैं चटख दरारे क्यों हैं

किरचे सीने मैं नासूर सी चुभती क्यों हैं

दीखते हैं कई चेहरे एक आईने मैं

कोई भी अपना चेहरा,  ना क्यों हैं

 

जिंदगी इतनी हैरान, इतनी अजब क्यों हैं

हर पल विडम्बना  मैं फँसी क्यों हैं

सपने किसी के, पलके किसी की, दस्तक किसी की

पूंछे जरा  की, फलते  और कही , क्यों हैं

 

जिंदगी की चौखट गीली मिट्टी सी नरम क्यों हैं

भरभरा के धराशाई होती क्यों हैं

जैसे ही रखते हैं कदम, अपना समझ कर

वो आशियाना किसी और का होता क्यों हैं

 

साँझ  की गोधूलि पर खड़ी  हैं जिंदगी

ना रात अपनी, न दिन साथ मैं हैं

दोनों हाथों से टटोलते अपनी उम्मीदे

ये  उम्मीदों  की घड़ियाँ इतनी बेवफा क्यों हैं 

 

जिंदगी ऐसी क्यों हैं, बेरौनक , सुनसान

टूटते  हैं सपने, पर  जज्बात जिन्दा क्यों हैं

हँसते हैं हम, पर  भॅवर मैं गिरते क्यों है

अपने सच और औरों के झूट का फरक सीख जाए

ऐसी  बेमानी  तमन्ना हम करते क्यों हैं

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

मेरी पहचान

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IMG_1689नन्हे पदचिंह, नन्हे पाँव

साथ चले, वोह मेरे साथ

लिखे रेत मैं, नए अध्याय

बिन जिनके मैं हुई  अकेली

साथ हुए, तो हुई मैं पूरी

हैं वोह टुकड़े दिल के मेरे ख़ास

 

छोटे हाथ, बड़ा हैं प्यार

जो कर दे पूरा, मन का मान

मासूम सा स्पर्श, सुँदर अहसास

बिन जिनके मैं हुई  अकेली

साथ हुए, तो हुई मैं पूरी

हैं वोह टुकड़े दिल के मेरे ख़ास

 

तुतले शब्द, अधूरे वाक्य

पर भरे हैं कितने कोमल भाव,

शीतल शीतल, जीवन की साँस

बिन जिनके मैं हुई  अकेली

साथ हुए, तो हुई मैं पूरी

हैं वोह टुकड़े दिल के मेरे ख़ास

 

मेरे प्यारे, मेरे दुलारे 

आंखों के सपने सारे

सारे आशीष हो सदा उनके साथ

बिन जिनके मैं हुई  अकेली

साथ हुए, तो हुई मैं पूरी

हैं वोह टुकड़े दिल के मेरे ख़ास

 

जीवन के चक्र मैं,

इस रंगमंच पै, मेरे कई नाम

पर उनका आना, कर जाता पूरा

देता अस्तित्व को नयी पहचनान

वोह हैं मेरे दिल के टुकड़े,

मैं हूँ उनकी “माँ”

 

 

गोधुली

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img_01511.jpgसांझ की चौखट पर बैठे

बीते दशको को  आज मैं जीते

इन्तजार करते उस गोधुली का

जब आये  उनके प्रियजन

हौंसला ले उनके हाथ पकड़ने का

वोह धुंदली आँखें, वोह काँपते हाथ

मुड़ मुड कर देंखे, रह रह के चाहे

कोई आ कर थामे उनके भी हाथ

जिन हाथो ने वोह  नन्ही  ऊँगली थामी

जिन बाहों ने अपनेपन की चादर डाली

जो पाँव चले आगे आगे, भागे पगडण्डी पर

राह दिखाई, मरहम लागाई, वोही चले अकेले,

बिना सहारे, बूढ़े हाथो मैं लाठी थामे

 

जीवन की संध्या पर

एक ही आशा, एक ही साँस

साथ हो अपने दिल के टुकड़े

प्यार से बोले,सुने समझे  मन के  हाल

उनके ही अंश, उनके ही वंश

बस पास हो उनके, हो प्रत्यक्ष

 

छोड़ गए हैं दिल के टुकड़े,

आज जो जीते अपनी सुबह को

थोडा सा अपने हिस्से का सूरज

क्यों न देते अपने ही अपनों को

अपने होंठो की स्मित मुस्कान

क्यों न फैलाते, उन  सूनी आँखों मैं

 

लो आज पकड लो अपने अपनों का हाथ

दे दो साथ, थोड़ी सी प्रिय, स्नेह की बौछार

उनको, जो सांझ की चौखट पर बैठे

बीते दशको को  आज मैं जीते

इन्तजार करते उस गोधुली का

जब आयेंगे उनके अपने प्रियजन

तपिश

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कई बार, ज़िन्दगी मैं इतने जख्म मिलते हैं, किसी और के  हाथो , की कराहता, रोता व्यक्ति  कह उठता हैं,

आँखों की गीली नमी मैं,
अंगारे सी तपिश हैं
और गीले सीने मैं
अग्नि की धधक हैं

जहन मैं उठते हैं अनगिनत सवाल
क्यों कोई उजाड गया मेरा घरोंदा
खाली कर गया, लूट गया भरा दामन
रोया हूँ मैं, रुंआंसा, ग़मगीन हूँ
आँखों की गीली नमी मैं,अंगारे सी तपिश हैं

एक् पल मैं छीन गयी,
माँ की आँचल की छाँव
वो रोटी खिलाते हाथ
मेरी पूरी दुनिया ही ले ली
मेरी माँ, मेरी साँसे हे ले ली
क्यों मेरी सारी नैमेते ही ले ली
आँखों की नमी मैं, अंगारे की तपिश हैं

छूट गए हाथों से हाथ
गुम गए वो बाबा के हाथ
वो दिन भर के थके मांदे
आते मेरा माथा सहलाते
एक प्याली चाय पी जुट जाते
क्यों ठंडा कर गया मेरी चूल्हे की आग
आँखों की नमी मैं, अंगारे की तपिश हैं

किसी की माँ, किसी की बेटी, किसी की बहु
किसी के बाबा, किसी के भाई, किसी का बेटा
कितने ही रिश्तों को, किसी एक का गुबार
बिन बात, बिन मतलब, होम कर गया
कितनो के चमन को, मरुस्थल कर गया
आँखों की नमी मैं, अंगारे की तपिश हैं

अंगार किसी का, किस बात पर क्यों आया
आक्रोश, तेरे मेरे ताने बनो पर क्यों छाया
बहती हैं आँखों से आंसू की धार
थाम के जिन हाथों को, मैं आज तक जी आया
उन्ही रिश्तों की अर्थी का बोझ
मेरे काँधे पर क्यों कर आया
आँखों की नमी मैं, अंगारे की तपिश हैं

सजनी अलबेली

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2013-01-19+20.26.57 (2)राग सुन्हेरी, आशा मनसंगी
प्रियतम प्यारे, संग तुम्हारे
चल दी बिन सोचे, बिन जाने
मैं, तुम्हरी सजनी अलबेली

सुंदर चितवन, स्वप्न अनोखे
बिन बोले, बिन जाने
क्षण भर मैं चल जाते
नैनो से शब्द, हाय यह बाण नशीले

मीठी बोली, मीठी बाते
सच, भी, सुन्दर भी
तुम्हरे अधरों से आती
जीवन की हर बात रंगीली

चंचल मन के मयूर
नाचे झूम झूम, झूम झूम
भीघ जाती, सिहर जाती
तृप्त हो जाती, सावन की बदरी मैं

पंख पैसारे , बांह फैलाये
उड़ जाती उन्मुक्त गगन मैं
नए आसमान, नयी दिशाए
तुम्हरे संग की प्यासी,
हो जाती यूँ पूरी मैं

राग सुन्हेरी, आशा मनसंगी
चल दी साथ तुम्हारे
बिन पूछे, बिन जाने
हैं ना प्रियतम, यह दिन कितना अतरंगी
हूँ ना मैं, तुम्हरी सजनी अलबेली

लघुता

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नदी किनारे गीली रेत पर पड़ा

वोह नन्हा सा कदम्

कितना आनंदित कर जाता हैं

 

ओ़स की छोटी सी बूँद से

रेशम सा कोमल पता

कितना उल्लसित हो जाता हैं

 

दोनों ही लघु रूप मैं

दोनों ही अबोधता मैं

यही लघु रूप

खोजती हूँ सब मैं

चाहे वोह इंसान हो या अश्रु

अनुरोध

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प्रणय का, प्यार का

स्नेह का अनुरोध है

दिल से दिल की राह का

मन से मन की बात का

हर सुलगते अरमान का

एक सुंदर अनुरोध है

 

 

सांझ की चौखट पर टिकी

उस गोधुली का अनुरोध हैं

लौट के आते अपने घरों को

आहट का अनुरोध हैं

प्रणय का, प्यार का

स्नेह का अनुरोध है

दीये जले प्रणय के

उस घडी का अनुरोध हैं

 

अनुरोध किसी की हा का

अनुरोध किसी की चाह का

मृगतृष्णा मैं भटकते सब

ठंडी छाँव का अनुरोध हैं

प्रणय का, प्यार का

स्नेह का अनुरोध है

नए संगीत पर थिरकते

उसी प्यार का अनुरोध हैं

 

जो पास लाए हमसफ़र

उस डोर का अनुरोध हैं

रिश्तों मैं रहे सदा

उम्र का अनुरोध हैं

प्रणय का, प्यार का

स्नेह का अनुरोध है

स्नेह के धागे बंधे

उस भाव का अनुरोध है

 

प्रणय, प्यार, स्नेह

से बने  हर दिल के तार

अनुरोध हैं बस इतना

छिड जाए एक बार

 

अधूरा हर कोई

बिन इन भाव के

दे जाए बसंत

बिन बरसात के

अनुरोध हैं उस

काली घनी बदली का

वेदना

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रोजमरा की जिंदगी मैं हम सदैव उसको देखते हैं जिसको दुख मिला, पर कई बार ऐसा भी होता हैं, जिसने दुख दिया, उसको भी दुःख होता हैं, और हम उसकी पीड़ा को अनदेखा कर जाते हैं.

उस आँख से टपका वोह अश्रु

जाने कितनी आंह मैं डूबा

पर दुःख क्या केवल उस तक सीमित था

क्या न था कही, कोई और भी गर्त मैं डूबा

 

क्या वोह पावनता, वोह माधुर्य, सिर्फ एक का था?

वेदना का सागर मात्र एक को छूता था?

जिसको आह लगी, जो बुरा बना

उसके मनोभावो से हर कोई अछूता था

 

दूसरा प्रताड़ित हुआ, तो यह भी

पराकाष्ठाओं का बंदी बना था

मानवीय रिश्ता ही हैं, लेना और देना

सागर किसी को व्यथित कर जाता

 

तो खुद भी कितनी व्यथा समेटे था

यूँ जो व्यथित हुआ, वोह तो अश्रु टपका

आंह भर, फिर आशा के महलों मैं सोया

पर दूसरा तो सिर्फ लांछित हो पाया

 

मौन सिसकियाँ उसकी कौन सुन पाया

माना उसने पीड़ा दी

पर वोह भी व्यथित हुआ

महल नहीं, उसने तो

 

आशा का अतिरंजित खंडहर ही पाया

आहत कर, खुद भी आहत हो

वोह न खुश हो पाया, न रो पाया

कैसी विडम्बना हैं दीये की

दुसरे को जलाता, पर

खुद भी जलकर ही रौशनी दे पाया

 

सन्नाटा

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उठता हैं बवंडर शब्दों का

पर चुप हैं कलम

और खामोश है जुबान

सन्नाटा सा छाया हैं

जब सदियाँ हैं करने को ब्यान

 

ढूँढ रही हूँ, भटक रही हूँ

चलता हैं एक अंतर्द्वंद

कहने को, है इतना कुछ

पर छाई हैं, एक  गहरी धुंध

 

उतावले बैठे हैं इतने क्षण

कुछ शब्दों मैं गढ़ जाने को,

एक मूरत सी बनती हैं

कुछ पन्नों मैं छप जाने को

 

ऐसा नहीं की,

मन का कोष हैं खाली

हैं बहुत से सपने, ढेर सी हकीकत

इतनी खुशियाँ  जो मैंने पाली

 

अंतर्मन मैं, उठती हैं लहरें

बाँट सकूँ सब संग,

हर पल जो मैंने पाया

हर अश्रु जो पलकों पर आया

 

बनते बिगड़ते रिश्तों की

दिन रात  उलझते धागों की

मौन पलों और  कहते अधरों की

दास्ताँ हैं बयाँ करनी मुझे

मौसम के आते जाते  हर रंगों की

 

माना एक प्रश्नचिन्ह है मेरे आगे

पर क्या यह होता हैं सबके संग

क्या हैं कोई एक भी मेरे जैसा

जो चाह कर भी न बाँट सके

अपने अंदर का कोई रंग

 

आज  चुप हैं कलम

और खामोश है जुबान

सन्नाटा सा छाया हैं

जब सदियाँ हैं करने को ब्यान

ख्याल….

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हर सूं यह ख्याल आते हैं

वो दिन, वो पल याद आते हैं

 

जब रात दिन एक होते थे

जमीन और आसमान साथ होते थे

हम तुम्हारे साथ और

तुम हमारे साथ होते थे

काश तुम हमारे पास होते

वो लम्हात याद आते हैं

 

जब चाँद हमारी झोली मैं था

और सूरज सातवे आसमान मैं

जब हमारी हंसी

तुम्हारी आँखों से टपका करती थी

और हमारी धडकन

तुम्हारे दिल मैं धडका करती थी

काश तुम हमारे पास होते

वोह जज्बात याद आते हैं

 

जब सारी कायनात हमारे दामन मैं

और सारे जलवे

हम अंदर से रोशन करा करते थे

हाथों मैं हाथ और

दिलो मैं एक दूजे की तस्वीर लिए

भवरे की तरह गूंजा करते थे

काश तुम हमारे पास होते

वो दिन, वो पल याद आते हैं