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लघुता

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नदी किनारे गीली रेत पर पड़ा

वोह नन्हा सा कदम्

कितना आनंदित कर जाता हैं

 

ओ़स की छोटी सी बूँद से

रेशम सा कोमल पता

कितना उल्लसित हो जाता हैं

 

दोनों ही लघु रूप मैं

दोनों ही अबोधता मैं

यही लघु रूप

खोजती हूँ सब मैं

चाहे वोह इंसान हो या अश्रु