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तपिश

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कई बार, ज़िन्दगी मैं इतने जख्म मिलते हैं, किसी और के  हाथो , की कराहता, रोता व्यक्ति  कह उठता हैं,

आँखों की गीली नमी मैं,
अंगारे सी तपिश हैं
और गीले सीने मैं
अग्नि की धधक हैं

जहन मैं उठते हैं अनगिनत सवाल
क्यों कोई उजाड गया मेरा घरोंदा
खाली कर गया, लूट गया भरा दामन
रोया हूँ मैं, रुंआंसा, ग़मगीन हूँ
आँखों की गीली नमी मैं,अंगारे सी तपिश हैं

एक् पल मैं छीन गयी,
माँ की आँचल की छाँव
वो रोटी खिलाते हाथ
मेरी पूरी दुनिया ही ले ली
मेरी माँ, मेरी साँसे हे ले ली
क्यों मेरी सारी नैमेते ही ले ली
आँखों की नमी मैं, अंगारे की तपिश हैं

छूट गए हाथों से हाथ
गुम गए वो बाबा के हाथ
वो दिन भर के थके मांदे
आते मेरा माथा सहलाते
एक प्याली चाय पी जुट जाते
क्यों ठंडा कर गया मेरी चूल्हे की आग
आँखों की नमी मैं, अंगारे की तपिश हैं

किसी की माँ, किसी की बेटी, किसी की बहु
किसी के बाबा, किसी के भाई, किसी का बेटा
कितने ही रिश्तों को, किसी एक का गुबार
बिन बात, बिन मतलब, होम कर गया
कितनो के चमन को, मरुस्थल कर गया
आँखों की नमी मैं, अंगारे की तपिश हैं

अंगार किसी का, किस बात पर क्यों आया
आक्रोश, तेरे मेरे ताने बनो पर क्यों छाया
बहती हैं आँखों से आंसू की धार
थाम के जिन हाथों को, मैं आज तक जी आया
उन्ही रिश्तों की अर्थी का बोझ
मेरे काँधे पर क्यों कर आया
आँखों की नमी मैं, अंगारे की तपिश हैं