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मेरी पहचान

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IMG_1689नन्हे पदचिंह, नन्हे पाँव

साथ चले, वोह मेरे साथ

लिखे रेत मैं, नए अध्याय

बिन जिनके मैं हुई  अकेली

साथ हुए, तो हुई मैं पूरी

हैं वोह टुकड़े दिल के मेरे ख़ास

 

छोटे हाथ, बड़ा हैं प्यार

जो कर दे पूरा, मन का मान

मासूम सा स्पर्श, सुँदर अहसास

बिन जिनके मैं हुई  अकेली

साथ हुए, तो हुई मैं पूरी

हैं वोह टुकड़े दिल के मेरे ख़ास

 

तुतले शब्द, अधूरे वाक्य

पर भरे हैं कितने कोमल भाव,

शीतल शीतल, जीवन की साँस

बिन जिनके मैं हुई  अकेली

साथ हुए, तो हुई मैं पूरी

हैं वोह टुकड़े दिल के मेरे ख़ास

 

मेरे प्यारे, मेरे दुलारे 

आंखों के सपने सारे

सारे आशीष हो सदा उनके साथ

बिन जिनके मैं हुई  अकेली

साथ हुए, तो हुई मैं पूरी

हैं वोह टुकड़े दिल के मेरे ख़ास

 

जीवन के चक्र मैं,

इस रंगमंच पै, मेरे कई नाम

पर उनका आना, कर जाता पूरा

देता अस्तित्व को नयी पहचनान

वोह हैं मेरे दिल के टुकड़े,

मैं हूँ उनकी “माँ”

 

 

गोधुली

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img_01511.jpgसांझ की चौखट पर बैठे

बीते दशको को  आज मैं जीते

इन्तजार करते उस गोधुली का

जब आये  उनके प्रियजन

हौंसला ले उनके हाथ पकड़ने का

वोह धुंदली आँखें, वोह काँपते हाथ

मुड़ मुड कर देंखे, रह रह के चाहे

कोई आ कर थामे उनके भी हाथ

जिन हाथो ने वोह  नन्ही  ऊँगली थामी

जिन बाहों ने अपनेपन की चादर डाली

जो पाँव चले आगे आगे, भागे पगडण्डी पर

राह दिखाई, मरहम लागाई, वोही चले अकेले,

बिना सहारे, बूढ़े हाथो मैं लाठी थामे

 

जीवन की संध्या पर

एक ही आशा, एक ही साँस

साथ हो अपने दिल के टुकड़े

प्यार से बोले,सुने समझे  मन के  हाल

उनके ही अंश, उनके ही वंश

बस पास हो उनके, हो प्रत्यक्ष

 

छोड़ गए हैं दिल के टुकड़े,

आज जो जीते अपनी सुबह को

थोडा सा अपने हिस्से का सूरज

क्यों न देते अपने ही अपनों को

अपने होंठो की स्मित मुस्कान

क्यों न फैलाते, उन  सूनी आँखों मैं

 

लो आज पकड लो अपने अपनों का हाथ

दे दो साथ, थोड़ी सी प्रिय, स्नेह की बौछार

उनको, जो सांझ की चौखट पर बैठे

बीते दशको को  आज मैं जीते

इन्तजार करते उस गोधुली का

जब आयेंगे उनके अपने प्रियजन

तपिश

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कई बार, ज़िन्दगी मैं इतने जख्म मिलते हैं, किसी और के  हाथो , की कराहता, रोता व्यक्ति  कह उठता हैं,

आँखों की गीली नमी मैं,
अंगारे सी तपिश हैं
और गीले सीने मैं
अग्नि की धधक हैं

जहन मैं उठते हैं अनगिनत सवाल
क्यों कोई उजाड गया मेरा घरोंदा
खाली कर गया, लूट गया भरा दामन
रोया हूँ मैं, रुंआंसा, ग़मगीन हूँ
आँखों की गीली नमी मैं,अंगारे सी तपिश हैं

एक् पल मैं छीन गयी,
माँ की आँचल की छाँव
वो रोटी खिलाते हाथ
मेरी पूरी दुनिया ही ले ली
मेरी माँ, मेरी साँसे हे ले ली
क्यों मेरी सारी नैमेते ही ले ली
आँखों की नमी मैं, अंगारे की तपिश हैं

छूट गए हाथों से हाथ
गुम गए वो बाबा के हाथ
वो दिन भर के थके मांदे
आते मेरा माथा सहलाते
एक प्याली चाय पी जुट जाते
क्यों ठंडा कर गया मेरी चूल्हे की आग
आँखों की नमी मैं, अंगारे की तपिश हैं

किसी की माँ, किसी की बेटी, किसी की बहु
किसी के बाबा, किसी के भाई, किसी का बेटा
कितने ही रिश्तों को, किसी एक का गुबार
बिन बात, बिन मतलब, होम कर गया
कितनो के चमन को, मरुस्थल कर गया
आँखों की नमी मैं, अंगारे की तपिश हैं

अंगार किसी का, किस बात पर क्यों आया
आक्रोश, तेरे मेरे ताने बनो पर क्यों छाया
बहती हैं आँखों से आंसू की धार
थाम के जिन हाथों को, मैं आज तक जी आया
उन्ही रिश्तों की अर्थी का बोझ
मेरे काँधे पर क्यों कर आया
आँखों की नमी मैं, अंगारे की तपिश हैं