
टूटते तारे

जिंदगी इतनी मुश्किल क्यों हैं
आँखों मैं इतनी नमी क्यों हैं
बाँध तोड़ के बहते हैं दरिये
इतनी आसानी से सब्र टूटते क्यों हैं
जिंदगी रंगी क्यों हैं आँसुओं के रंग में
दामन गीला और मन भारी क्यों हैं
सरे रंग छोड़ के खड़ी हैं कलम मेरी
फिर कहे की पन्ने यूं कोरे क्यों हैं
जिंदगी के आईने मैं चटख दरारे क्यों हैं
किरचे सीने मैं नासूर सी चुभती क्यों हैं
दीखते हैं कई चेहरे एक आईने मैं
कोई भी अपना चेहरा, ना क्यों हैं
जिंदगी इतनी हैरान, इतनी अजब क्यों हैं
हर पल विडम्बना मैं फँसी क्यों हैं
सपने किसी के, पलके किसी की, दस्तक किसी की
पूंछे जरा की, फलते और कही , क्यों हैं
जिंदगी की चौखट गीली मिट्टी सी नरम क्यों हैं
भरभरा के धराशाई होती क्यों हैं
जैसे ही रखते हैं कदम, अपना समझ कर
वो आशियाना किसी और का होता क्यों हैं
साँझ की गोधूलि पर खड़ी हैं जिंदगी
ना रात अपनी, न दिन साथ मैं हैं
दोनों हाथों से टटोलते अपनी उम्मीदे
ये उम्मीदों की घड़ियाँ इतनी बेवफा क्यों हैं
जिंदगी ऐसी क्यों हैं, बेरौनक , सुनसान
टूटते हैं सपने, पर जज्बात जिन्दा क्यों हैं
हँसते हैं हम, पर भॅवर मैं गिरते क्यों है
अपने सच और औरों के झूट का फरक सीख जाए
ऐसी बेमानी तमन्ना हम करते क्यों हैं
हर सूं यह ख्याल आते हैं
वो दिन, वो पल याद आते हैं
जब रात दिन एक होते थे
जमीन और आसमान साथ होते थे
हम तुम्हारे साथ और
तुम हमारे साथ होते थे
काश तुम हमारे पास होते
वो लम्हात याद आते हैं
जब चाँद हमारी झोली मैं था
और सूरज सातवे आसमान मैं
जब हमारी हंसी
तुम्हारी आँखों से टपका करती थी
और हमारी धडकन
तुम्हारे दिल मैं धडका करती थी
काश तुम हमारे पास होते
वोह जज्बात याद आते हैं
जब सारी कायनात हमारे दामन मैं
और सारे जलवे
हम अंदर से रोशन करा करते थे
हाथों मैं हाथ और
दिलो मैं एक दूजे की तस्वीर लिए
भवरे की तरह गूंजा करते थे
काश तुम हमारे पास होते
वो दिन, वो पल याद आते हैं
हाथ पकड़ कर, मनुहार वोह करने लगे
किस बात पर नाराज़ हो, किस बात पर तुम यूँ उफकने लगे
हम ने नज़र फिरा, थोडा सा ठिठक कर कहा
हम क्यों तुमसे रूठने लगे ,
हमारी बिसात ही क्या, जो हम ऐसे बहकने लगे
सब अछा हैं, सब ठीक हैं, आखो के आंसू छुपाने लगे
पर फिर बड़े प्यार से हाथ फिरा
उन्होंने हमे थप्काया, और पूछने लगे,
जानम बता दो हमरी खता क्या हैं
किस बात तुम बेहाल होने लगे
बस फिर क्या था, सारे बाँध तोड़
आखों के मोती, टपकने लगे
सारे शिकवे जुबां से, लरजने लगे
दिल के टुकड़े हमारे, क्योंकर हुए
सरे किस्से बया होने लगे
लगा था सुन उनका आगोश
और भी मजबूत हो जाएगा
अपने रुमाल से हमारी
आखो की नमी वोह उठाने लगंगे
पर न हुआ यह
वोह जो सुनना चाहते थे, हम क्यों हैं परेशान
अचानक भडकने लगे, हमारी शिकायतों से उफनने लगे
हमारे हाले दिल, उन्हें तरकश के तीर से चुभने लगे
हाय रे यह इंसान का अहं
एक पल मैं आंसूं भी, पत्थर लगने लगे
वोह थपकते हाथ यूँ ही रुक गए,
हम फिर तनहाइयों मैं भटकने लगे
शिकवा न करे तो भी अकेले,
और करे तो भी अकेले
क्या करे क्या न करे,
वोही समझने की, कोशिश करने लगे
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